Wednesday, December 19, 2012

केरल से जम्‍मू कश्‍मीर तक ई-टॉइलट

विशेष लेख                                                                         *एम.जैकब इ‍ब्राहिम    
                  Courtesy Photo
साफ-सफाई और जन-स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में राज्‍य का एक प्रमुख अविष्‍कार केरल का खुद का ई-टॉइलट अब जल्‍दी ही जम्‍मू-कश्‍मीर की हिम आच्‍छदित सुन्‍दर घाटियों में भी दिखाई देगा।
    इस ई-टॉइलट का विकास तिरुअनंतपुरम के ऐरम साइंटिफिक सलुशन ने किया है और इसे जम्‍मू कश्‍मीर क्षेत्र के लिए ग्राहक अनुकूल बनाया गया है, क्‍योंकि केरल की भौगोलिक स्थिति, जम्‍मू-कश्‍मीर की भौगोलिक स्थिति से भिन्‍न है और जम्‍मू-कश्‍मीर पर्यटन विभाग ने राज्‍य में ई-टॉइलट स्थापित करने का अनुरोध किया है। ये ई-टॉयलेट्स अफरवाट और गुलमर्ग में लगाये जाएगे। अफरवाट दुनिया की वो सबसे ऊंची जगह है, जहां समुद्र तल से 4000 फीट की ऊँचाई पर गोंडोलों के इस्‍तेमाल से केबल कार चलती है। यह दुनिया का एक मात्र स्‍थान है, जहां स्‍की करने वालों को 4390 मीटर की ऊँचाई पर पहुंचाया जाता है। 
    ई-टॉयलेट्स के अलावा खासतौर से डिजाइन किए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट (एसटीपी) भी डल झील के पास लगाये जा रहे है, ताकि कूड़ा-कचरा साफ करने के झंझट से मुक्ति पायी जा सके। इस उद्देश्‍य से जल्‍दी ही तिरुअनंतपुरम से जम्‍मू-कश्‍मीर के लिए 2.5 टन का एक कन्‍टेनर रवाना किया जाएगा, जिसमें ई-टॉइलट और एसटीपी के कलपुर्जे लदे होंगे। ऐरम साइं‍टिफिक ने ये ई-टॉइलट बनाये है, जो शून्‍य से नीचे के तापमान में ही नहीं, बल्कि शून्‍य से 55 डिग्री नीचे के तापमान में भी काम करते रहेंगे। इतनी सर्दी में काम कर सके, इसके लिए सैनिक स्‍तर के इन टॉइलट में भू-भाग के अनुकूल पुर्जे लगाये गये है। ऐरम साइंटिफिक ने देश के विभिन्‍न भागों ने काम करते रहने वाले 400 से ज्‍यादा ई-टॉयलेट्स बनाये है।
ई-टॉयलेट्स का डिजाइन आस्‍ट्रेलिया के नेशनल पब्लिक टॉइलट मैप की तर्ज पर बनाया गया है। उपभोक्‍ता इस टॉइलट का नक्‍शा इंटरनेट पर अथवा अपने सेलफोन पर देख सकते है और सबसे पास स्थि‍त टॉइलट का चुनाव कर सकते है। पास ही पार्किंग की जगह होगी, भुगतान कर सकेंगे और समय तथा अन्‍य विवरण प्राप्‍त कर सकेंगे। इस कंपनी ने बंगलौर के इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइंस के साथ एक करार किया है, जिसके अनुसार ई-टॉइलट के बारे में आगे अनुसंधान किया जाएगा।
साफ-सफाई क्षेत्र में सतत् हस्‍तक्षेप की जरूरत
शहरी और अर्द्ध-शहरी इलाकों में कई तरह की समस्‍याएं होती है। खासतौर से साफ-सफाई को लेकर मानक सार्वजनिक शौचालयों में मुश्किलें पेश आती है। इन क्षेत्रों में जिस तरह के परम्‍परागत साफ-सफाई के तरीके प्रचलित हैं, उनके कारण शहरों में आबादी बढ़ने से कई प्रकार की समस्‍याएं पैदा हो जाती हैं। प्रस्‍तावित सफाई व्‍यवस्‍था से इन जगहों में सुधार होगा।
सामाजिक सरोकार – सफाई की व्‍यवस्‍था न होने पर संक्रमण पैदा होता है और खासतौर से महिलाएं और बच्‍चे बीमार पड़ जाते हैं, अगर सभी सार्वजनिक स्‍थानों पर इलैक्‍ट्रोनिक पब्लिक टॉइलट लगा दिये जाएं, तो महिलाओं की निजता, गरिमा और सुरक्षा बढ़ेगी।
गंदे पर्यटक स्‍थल – देश में गंदगी के चलते पर्यटन पर बुरा असर पड्ता है। अनेक पर्यटक स्‍थल और उन्‍हें सड़कों से जोड़ने वाली जगहों की स्थिति खराब है और इनके कारण पर्यटकों को असुविधा होती है। भारत में आकर उन्‍हें संचारी रोगों का शिकार बनने की संभावना बनी रहती है, जिसके चलते भारत आने वाले पर्यटकों के मन में संदेह बना रहता है।
भारत का पहला इलैक्‍ट्रोनिक सार्वजनिक शौचालय - ई-टॉइलट
     कंपनी का यह एक अनूठा उत्‍पाद है और इसके जरिये सार्वजनिक सफाई की चुनौती स्‍वीकार करने की कोशिश की गई है। अच्‍छे हालात में किसी भी सार्वजनिक शौचालय में जल-मल निकासी की क्षमता होनी चाहिए और पानी की किफायत और निरंतरता बनी रहनी चाहिए। ई-टॉइलट इस समस्‍या का सबसे बढि़या समाधान है और इन समस्‍याओं को कारगर ढंग से निपटाता है। यह लागत प्रभावी है और किसी भी भौ‍गोलिक स्थिति के अनुकूल बनाया जा सकता है। यह कंपनी इस काम को मिशन मानकर कर रही है और उसने भारत के सभी शहरों में आधुनिक और साफ किस्‍म में टॉइलट लगाने का इरादा किया हुआ है।
नवाचार
ई-टॉइलट के पीछे कंपनी का विचार ये था कि एक पर्यावरण हितैषी ऐसा सार्वजनिक शौचालय विकसित किया जाए, जो इलैक्‍ट्रोनिक हो, उसे एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर ले जाया सके और उसे वेब तथा जैव टैक्‍नोलॉजियों से लैस किया जाए, ताकि वह किफायती ढंग से निरंतर काम कर सके और भारत की परिस्थिति में कारगर ढंग से काम करे। ई-टॉइलट को देशभर में सार्वजनिक शौचालय स्‍थापित करने के लिए उपयुक्‍त माना जाता है और इसमें हाथ से ज्‍यादा साफ-सफाई करने की जरूरत नहीं पड़ती तथा ऊर्जा और पानी की जरूरत कम पड़ती है। ये ई-टॉइलट पूरी तरह ऑटो मोड पर काम करते है। एक सिक्‍का डालने से उपभोक्‍ता के लिए इनका दरवाजा खुल जाता है, स्विच ऑन हो जाते है, और इस तरह से ऊर्जा की बचत होती है। बोलकर भी इनमें आदेश दिये जा सकते है। कार्यक्रम के अनुसार ये शौचालय सिर्फ 1.5 लीटर पानी खर्च करके टॉइलट फ्लश कर देते है, और उपभोक्ता को 3 मिनट का समय मिलता है। अगर उपभोक्‍ता इससे ज्‍यादा समय लगाता है, तो पानी का खर्च 4.5 लीटर होता है। 5 या 10 बार इस्‍तेमाल किये जाने पर पूरे शौचालय को साफ करने का भी प्रोग्राम किया जा सकता है। इस ई-टॉइलट में इलैक्‍ट्रोनिक, वेब और मोबाइल टैक्‍नोलॉजियों को इस्‍तेमाल किया गया है, जिससे दरवाजे खुलते है, फ्लशिंग होती है और वाशिंग तथा स्‍टे‍रिलाइजेशन अपने आप पूरा हो जाता है। प्‍लेटफार्म को अपने आप साफ करने का प्रोग्राम भी डाला जा सकता है। इसके अलावा पानी की टंकी और बायोगैस प्‍लांट को भी सूचना दी जाती है। अगर ये काम न करें, तो उपाय किये जा सकते है। इन शौचालयों से निकलने वाले ठोस और तरल कचरे का वैज्ञानिक तरीके से शोधन किया जाता है और इससे निकलने वाले पानी को दोबारा इस्‍तेमाल कर लिया जाता है। इस शौचालय की खास बात यह है कि नये ढंग से अंतर-निहित इलैक्‍ट्रोनिक उपकरण लगाये गये है, जिससे टॉइलट की सफाई अपने आप हो जाती है, पानी कम खर्च होता है और जल-मल की निकासी तथा ठोस और तरल कचरे का निपटान संभव होता है। 
परियोजना की विशेषताएं
·               ताजा स्थिति के अनुसार स्‍वच्‍छता क्षेत्र में भारत में कहीं भी उचित और किफायती तकनीक प्रयोग में नहीं लाई जा रही। ई-टॉइलट एक ऐसा मॉडल है, जिसमें इलैक्‍ट्रॉनिक्‍स, यांत्रिकी, सूचना प्रौद्योगिकी आदि तकनीकों का तालमेल अत्‍यधिक किफायती और मॉड्यूलर डिजाइन के लिए किया जाता है।
·               इस प्रकार का स्‍वचालित टॉइलट भारत में एक नई बात है: यह विशेष रूप से महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि इसमें स्‍वत: साफ करने और रोगाणुनाशक क्षमताएं हैं। रोगाणुनाशन गंभीर संचारी रोगों की रोकथाम में सहायक हैं।
·               जीपीआरएस की सुविधाओं वाली इकाई का प्रबंध करने में सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (आईसीटीई) का प्रयोग।
·               ई-टॉइलट में विज्ञापनों से राजस्‍व कमाने का एक बेमिसाल मॉडल भी शामिल है, जो इकाई को सुदर्शन बनाता है और वातावरण को स्‍वच्‍छ रखता है। विज्ञापन पैनल राजस्‍व के अनेक अवसर प्रदान करते हैं, क्‍योंकि ये खासतौर पर मैट्रो शहरों और अनेक सार्वजनिक स्‍थानों पर अत्‍यधिक आकर्षक मॉडल हैं। इसके अलावा इन इकाइयों में उच्‍च तकनीक वाले विज्ञापनों जैसे घूमने वाले विज्ञापन को प्रदर्शित करने की क्षमता है, जो इसके सौंदर्य और टिकाऊपन को बढ़ाते हैं। ये टिकाऊ मॉडल किसी पर्यटक स्‍थल के लिए अत्‍यधिक उपयुक्‍त हैं। इन स्‍थानों पर रोजगार के अवसर पैदा किया जा सकते हैं और अत्‍यधिक स्‍वच्‍छता सुनिश्चित की जा सकती है।

    ई-टॉइलट जीवन की गुणवत्‍ता, कुशलता और पर्यावरण संरक्षण के सभी तीनों पहलुओं को समाहित करता है। ई-टॉइलट का उद्देश्‍य लोगों के जीवन स्‍तर में सुधार लाना है। इसमें परम्‍परागत सार्वजनिक शौचालयों की तुलना में स्‍वच्‍छता की आधुनिक सुविधाएं उपलब्‍ध हैं। पूरी तरह स्वचालित होने के बावजूद सामान्‍य प्रयोगकर्ता को इसके प्रयोग में कोई कठिनाई पेश नहीं आती। इसमें जल‍ निकासी की कारगर और कुशल तकनीकों के प्रयोग के कारण अमूल्‍य संसाधन यथा पानी और बिजली आदि की किफायत होती है। यह ऐसी किफायती व्‍यवस्‍था है जिसके द्वारा अधिक आबादी वाले प्रदेशों में भी साफ-सफाई सुनिश्चित की जा सकती है। एक इकाई 7 से 10 वर्ष तक बराबर काम कर सकती है और इस प्रकार यह टिकाऊ है। साथ ही, इन इकाइयों के लगाने से रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं, जो अनेक लोगों को आजीविका में सहायक होते हैं। ई-टॉइलट की हरित टैक्‍नॉलोजी के जरिए पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है और यह भारतीय विज्ञान संस्‍था के साथ जुड़कर असाधारण हरित मॉडल के रूप में उभरेगी।
    हमारे देश के विभिन्‍न स्‍थानों पर ई-टॉइलट की 400 से अधिक इकाइयां लगाई गई हैं। पर्यटकों को स्‍वच्‍छता की विश्‍व स्‍तरीय सुविधा उपलब्‍ध कराने के लिए सन् 2010 की पहली तिमाही में इसका व्यावसायिक तौर पर उत्‍पादन शुरू हुआ। ऐरम साइंटिफिक कंपनी ने केरल के विभिन्‍न भागों और ग्रेटर नोएडा में ई-टॉइलट लगाई है। अन्‍य 300 इकाइयां लगाई जा रही है और अगले दो महीनों में काम करने लगेगी। प्रत्‍येक इकाई औसतन 130 लोगों द्वारा रोजाना इस्‍तेमाल की जाती है। इस कंपनी ने दक्षिण अफ्रीका के साथ प्रौद्योगिकी हस्‍तांतरण समझौता और नाइजीरिया तथा बोत्‍सवाना के साथ विपणन समझौता किया है।
कारगर परियोजनाएं   शहरी क्षेत्रों में स्‍वच्‍छ बुनियादी ढांचा उपलब्‍ध कराने के लिए ई-टॉइलट अब एक टिकाऊ परियोजना के रूप में उभर रही है। केरल सरकार के विभिन्‍न विभाग शहरी क्षेत्रों में स्‍वच्‍छ परियोजनाओं पर आधारित टिकाऊ प्रौद्योगिकी उपलब्‍ध कराने के लिए बड़े स्‍तर पर परियोजनाओं को कार्यान्वित कर रहे हैं।


·               केरल सरकार का महिला विकास निगम 200 से अधिक ई-टॉइलट लगा रहा है, जिन्‍हें महिलाओं के लिए शी-टॉइलट का नाम दिया गया है।
·               सार्वजनिक निर्माण विभाग केरल के राजमार्गों पर अनेक स्‍थानों पर ईव-ओन-ई-टॉइलट लगा रहा है।
·               केरल के पर्यटन विभाग की अपने महत्‍वपूर्ण पर्यटक स्‍थलों पर ई-टाइलटों का जाल बिछाने की योजना है। ऐरम कंपनी केरल में तीस से अधिक स्‍थानों पर पर्यटकों के लिए सुविधा केन्‍द्र भी बना रहा है।
·               केरल का पतनमथिट्टा जिला भारत में ई-टॉइलट बुनियादी ढांचे से जुड़ा हुआ पहला जिला है। जहां टॉइलटों के स्‍थान और उनके कार्य की स्थिति वैब आ‍धारित मानचित्र पर देखी जा सकती है। यह उस पर्यटक के लिए अधिक उपयोगी है, जो अपने परिवार के साथ यात्रा करता है। जुड़े हुए ई-टॉइलटों के बारे में जानकारी जीपीआरएस पर उपलब्‍ध है और उनका पता लगाने के लिए मोबाइल अथवा इन्‍टरनेट पर जानकारी प्राप्‍त की जा सकती है। ई-टॉइलट यह जानकारी दे सकते हैं कि वे महिलाओं के लिए हैं अथवा पुरूषों के लिए और इन सुविधाओं के स्‍थान और दूरी के बारे में भी जानकारी उपलब्‍ध की जा सकती है।
   
    इस कंपनी को हाल ही में बिल एंड मेलिंदा गेट्स फाउन्‍डेशन से चार लाख 50 हजार डॉलर से अधिक राशि के का अनुदान प्राप्‍त हुआ है, जिसके अधीन वह शहरी ग़रीबों की अधिक पहुंच में सुलभ शौचालय बनाने के लिए पर्यावरण हितैषी और स्‍वच्‍छ ई-टॉइलट लगाएगी। भारत सरकार के वैज्ञानिक और औद्योगिक विभाग के टैक्‍नोप्रीनियोर प्रोत्‍साहन कार्यक्रम के अधीन प्रोटोटाइप ई-टॉइलट का विकास किया गया। इसका विकास केरल सरकार की सहायता से तिरुअनन्‍तपुरम स्थि‍त टैक्‍नोपार्क कंपनी ने किया था। इस कंपनी को प्रोटोटाइप विकास के लिए भारत सरकार से सहायता अनुदान मिला और काम चलाऊ मॉडल तैयार करने के बाद यह प्रौद्योगिकी ऐरम सांइटिफिक सॉलूशन्‍स को इस प्रौद्योगिकी के व्यावसायीककरण के लिए हस्‍तांतरित कर दी गई है।                                         
(पीआईबी फीचर्स)   19-दिसंबर-2012 15:43 IST


*उपनिदेशक, पीआईबी, तिरुअनन्‍तपुरम

मीणा/शुक्‍ला/क्‍वात्रा/गीता/शौकत--298
पूरी सूची-19.12.2012