Wednesday, December 19, 2012

केरल से जम्‍मू कश्‍मीर तक ई-टॉइलट

विशेष लेख                                                                         *एम.जैकब इ‍ब्राहिम    
                  Courtesy Photo
साफ-सफाई और जन-स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में राज्‍य का एक प्रमुख अविष्‍कार केरल का खुद का ई-टॉइलट अब जल्‍दी ही जम्‍मू-कश्‍मीर की हिम आच्‍छदित सुन्‍दर घाटियों में भी दिखाई देगा।
    इस ई-टॉइलट का विकास तिरुअनंतपुरम के ऐरम साइंटिफिक सलुशन ने किया है और इसे जम्‍मू कश्‍मीर क्षेत्र के लिए ग्राहक अनुकूल बनाया गया है, क्‍योंकि केरल की भौगोलिक स्थिति, जम्‍मू-कश्‍मीर की भौगोलिक स्थिति से भिन्‍न है और जम्‍मू-कश्‍मीर पर्यटन विभाग ने राज्‍य में ई-टॉइलट स्थापित करने का अनुरोध किया है। ये ई-टॉयलेट्स अफरवाट और गुलमर्ग में लगाये जाएगे। अफरवाट दुनिया की वो सबसे ऊंची जगह है, जहां समुद्र तल से 4000 फीट की ऊँचाई पर गोंडोलों के इस्‍तेमाल से केबल कार चलती है। यह दुनिया का एक मात्र स्‍थान है, जहां स्‍की करने वालों को 4390 मीटर की ऊँचाई पर पहुंचाया जाता है। 
    ई-टॉयलेट्स के अलावा खासतौर से डिजाइन किए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट (एसटीपी) भी डल झील के पास लगाये जा रहे है, ताकि कूड़ा-कचरा साफ करने के झंझट से मुक्ति पायी जा सके। इस उद्देश्‍य से जल्‍दी ही तिरुअनंतपुरम से जम्‍मू-कश्‍मीर के लिए 2.5 टन का एक कन्‍टेनर रवाना किया जाएगा, जिसमें ई-टॉइलट और एसटीपी के कलपुर्जे लदे होंगे। ऐरम साइं‍टिफिक ने ये ई-टॉइलट बनाये है, जो शून्‍य से नीचे के तापमान में ही नहीं, बल्कि शून्‍य से 55 डिग्री नीचे के तापमान में भी काम करते रहेंगे। इतनी सर्दी में काम कर सके, इसके लिए सैनिक स्‍तर के इन टॉइलट में भू-भाग के अनुकूल पुर्जे लगाये गये है। ऐरम साइंटिफिक ने देश के विभिन्‍न भागों ने काम करते रहने वाले 400 से ज्‍यादा ई-टॉयलेट्स बनाये है।
ई-टॉयलेट्स का डिजाइन आस्‍ट्रेलिया के नेशनल पब्लिक टॉइलट मैप की तर्ज पर बनाया गया है। उपभोक्‍ता इस टॉइलट का नक्‍शा इंटरनेट पर अथवा अपने सेलफोन पर देख सकते है और सबसे पास स्थि‍त टॉइलट का चुनाव कर सकते है। पास ही पार्किंग की जगह होगी, भुगतान कर सकेंगे और समय तथा अन्‍य विवरण प्राप्‍त कर सकेंगे। इस कंपनी ने बंगलौर के इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइंस के साथ एक करार किया है, जिसके अनुसार ई-टॉइलट के बारे में आगे अनुसंधान किया जाएगा।
साफ-सफाई क्षेत्र में सतत् हस्‍तक्षेप की जरूरत
शहरी और अर्द्ध-शहरी इलाकों में कई तरह की समस्‍याएं होती है। खासतौर से साफ-सफाई को लेकर मानक सार्वजनिक शौचालयों में मुश्किलें पेश आती है। इन क्षेत्रों में जिस तरह के परम्‍परागत साफ-सफाई के तरीके प्रचलित हैं, उनके कारण शहरों में आबादी बढ़ने से कई प्रकार की समस्‍याएं पैदा हो जाती हैं। प्रस्‍तावित सफाई व्‍यवस्‍था से इन जगहों में सुधार होगा।
सामाजिक सरोकार – सफाई की व्‍यवस्‍था न होने पर संक्रमण पैदा होता है और खासतौर से महिलाएं और बच्‍चे बीमार पड़ जाते हैं, अगर सभी सार्वजनिक स्‍थानों पर इलैक्‍ट्रोनिक पब्लिक टॉइलट लगा दिये जाएं, तो महिलाओं की निजता, गरिमा और सुरक्षा बढ़ेगी।
गंदे पर्यटक स्‍थल – देश में गंदगी के चलते पर्यटन पर बुरा असर पड्ता है। अनेक पर्यटक स्‍थल और उन्‍हें सड़कों से जोड़ने वाली जगहों की स्थिति खराब है और इनके कारण पर्यटकों को असुविधा होती है। भारत में आकर उन्‍हें संचारी रोगों का शिकार बनने की संभावना बनी रहती है, जिसके चलते भारत आने वाले पर्यटकों के मन में संदेह बना रहता है।
भारत का पहला इलैक्‍ट्रोनिक सार्वजनिक शौचालय - ई-टॉइलट
     कंपनी का यह एक अनूठा उत्‍पाद है और इसके जरिये सार्वजनिक सफाई की चुनौती स्‍वीकार करने की कोशिश की गई है। अच्‍छे हालात में किसी भी सार्वजनिक शौचालय में जल-मल निकासी की क्षमता होनी चाहिए और पानी की किफायत और निरंतरता बनी रहनी चाहिए। ई-टॉइलट इस समस्‍या का सबसे बढि़या समाधान है और इन समस्‍याओं को कारगर ढंग से निपटाता है। यह लागत प्रभावी है और किसी भी भौ‍गोलिक स्थिति के अनुकूल बनाया जा सकता है। यह कंपनी इस काम को मिशन मानकर कर रही है और उसने भारत के सभी शहरों में आधुनिक और साफ किस्‍म में टॉइलट लगाने का इरादा किया हुआ है।
नवाचार
ई-टॉइलट के पीछे कंपनी का विचार ये था कि एक पर्यावरण हितैषी ऐसा सार्वजनिक शौचालय विकसित किया जाए, जो इलैक्‍ट्रोनिक हो, उसे एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर ले जाया सके और उसे वेब तथा जैव टैक्‍नोलॉजियों से लैस किया जाए, ताकि वह किफायती ढंग से निरंतर काम कर सके और भारत की परिस्थिति में कारगर ढंग से काम करे। ई-टॉइलट को देशभर में सार्वजनिक शौचालय स्‍थापित करने के लिए उपयुक्‍त माना जाता है और इसमें हाथ से ज्‍यादा साफ-सफाई करने की जरूरत नहीं पड़ती तथा ऊर्जा और पानी की जरूरत कम पड़ती है। ये ई-टॉइलट पूरी तरह ऑटो मोड पर काम करते है। एक सिक्‍का डालने से उपभोक्‍ता के लिए इनका दरवाजा खुल जाता है, स्विच ऑन हो जाते है, और इस तरह से ऊर्जा की बचत होती है। बोलकर भी इनमें आदेश दिये जा सकते है। कार्यक्रम के अनुसार ये शौचालय सिर्फ 1.5 लीटर पानी खर्च करके टॉइलट फ्लश कर देते है, और उपभोक्ता को 3 मिनट का समय मिलता है। अगर उपभोक्‍ता इससे ज्‍यादा समय लगाता है, तो पानी का खर्च 4.5 लीटर होता है। 5 या 10 बार इस्‍तेमाल किये जाने पर पूरे शौचालय को साफ करने का भी प्रोग्राम किया जा सकता है। इस ई-टॉइलट में इलैक्‍ट्रोनिक, वेब और मोबाइल टैक्‍नोलॉजियों को इस्‍तेमाल किया गया है, जिससे दरवाजे खुलते है, फ्लशिंग होती है और वाशिंग तथा स्‍टे‍रिलाइजेशन अपने आप पूरा हो जाता है। प्‍लेटफार्म को अपने आप साफ करने का प्रोग्राम भी डाला जा सकता है। इसके अलावा पानी की टंकी और बायोगैस प्‍लांट को भी सूचना दी जाती है। अगर ये काम न करें, तो उपाय किये जा सकते है। इन शौचालयों से निकलने वाले ठोस और तरल कचरे का वैज्ञानिक तरीके से शोधन किया जाता है और इससे निकलने वाले पानी को दोबारा इस्‍तेमाल कर लिया जाता है। इस शौचालय की खास बात यह है कि नये ढंग से अंतर-निहित इलैक्‍ट्रोनिक उपकरण लगाये गये है, जिससे टॉइलट की सफाई अपने आप हो जाती है, पानी कम खर्च होता है और जल-मल की निकासी तथा ठोस और तरल कचरे का निपटान संभव होता है। 
परियोजना की विशेषताएं
·               ताजा स्थिति के अनुसार स्‍वच्‍छता क्षेत्र में भारत में कहीं भी उचित और किफायती तकनीक प्रयोग में नहीं लाई जा रही। ई-टॉइलट एक ऐसा मॉडल है, जिसमें इलैक्‍ट्रॉनिक्‍स, यांत्रिकी, सूचना प्रौद्योगिकी आदि तकनीकों का तालमेल अत्‍यधिक किफायती और मॉड्यूलर डिजाइन के लिए किया जाता है।
·               इस प्रकार का स्‍वचालित टॉइलट भारत में एक नई बात है: यह विशेष रूप से महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि इसमें स्‍वत: साफ करने और रोगाणुनाशक क्षमताएं हैं। रोगाणुनाशन गंभीर संचारी रोगों की रोकथाम में सहायक हैं।
·               जीपीआरएस की सुविधाओं वाली इकाई का प्रबंध करने में सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (आईसीटीई) का प्रयोग।
·               ई-टॉइलट में विज्ञापनों से राजस्‍व कमाने का एक बेमिसाल मॉडल भी शामिल है, जो इकाई को सुदर्शन बनाता है और वातावरण को स्‍वच्‍छ रखता है। विज्ञापन पैनल राजस्‍व के अनेक अवसर प्रदान करते हैं, क्‍योंकि ये खासतौर पर मैट्रो शहरों और अनेक सार्वजनिक स्‍थानों पर अत्‍यधिक आकर्षक मॉडल हैं। इसके अलावा इन इकाइयों में उच्‍च तकनीक वाले विज्ञापनों जैसे घूमने वाले विज्ञापन को प्रदर्शित करने की क्षमता है, जो इसके सौंदर्य और टिकाऊपन को बढ़ाते हैं। ये टिकाऊ मॉडल किसी पर्यटक स्‍थल के लिए अत्‍यधिक उपयुक्‍त हैं। इन स्‍थानों पर रोजगार के अवसर पैदा किया जा सकते हैं और अत्‍यधिक स्‍वच्‍छता सुनिश्चित की जा सकती है।

    ई-टॉइलट जीवन की गुणवत्‍ता, कुशलता और पर्यावरण संरक्षण के सभी तीनों पहलुओं को समाहित करता है। ई-टॉइलट का उद्देश्‍य लोगों के जीवन स्‍तर में सुधार लाना है। इसमें परम्‍परागत सार्वजनिक शौचालयों की तुलना में स्‍वच्‍छता की आधुनिक सुविधाएं उपलब्‍ध हैं। पूरी तरह स्वचालित होने के बावजूद सामान्‍य प्रयोगकर्ता को इसके प्रयोग में कोई कठिनाई पेश नहीं आती। इसमें जल‍ निकासी की कारगर और कुशल तकनीकों के प्रयोग के कारण अमूल्‍य संसाधन यथा पानी और बिजली आदि की किफायत होती है। यह ऐसी किफायती व्‍यवस्‍था है जिसके द्वारा अधिक आबादी वाले प्रदेशों में भी साफ-सफाई सुनिश्चित की जा सकती है। एक इकाई 7 से 10 वर्ष तक बराबर काम कर सकती है और इस प्रकार यह टिकाऊ है। साथ ही, इन इकाइयों के लगाने से रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं, जो अनेक लोगों को आजीविका में सहायक होते हैं। ई-टॉइलट की हरित टैक्‍नॉलोजी के जरिए पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है और यह भारतीय विज्ञान संस्‍था के साथ जुड़कर असाधारण हरित मॉडल के रूप में उभरेगी।
    हमारे देश के विभिन्‍न स्‍थानों पर ई-टॉइलट की 400 से अधिक इकाइयां लगाई गई हैं। पर्यटकों को स्‍वच्‍छता की विश्‍व स्‍तरीय सुविधा उपलब्‍ध कराने के लिए सन् 2010 की पहली तिमाही में इसका व्यावसायिक तौर पर उत्‍पादन शुरू हुआ। ऐरम साइंटिफिक कंपनी ने केरल के विभिन्‍न भागों और ग्रेटर नोएडा में ई-टॉइलट लगाई है। अन्‍य 300 इकाइयां लगाई जा रही है और अगले दो महीनों में काम करने लगेगी। प्रत्‍येक इकाई औसतन 130 लोगों द्वारा रोजाना इस्‍तेमाल की जाती है। इस कंपनी ने दक्षिण अफ्रीका के साथ प्रौद्योगिकी हस्‍तांतरण समझौता और नाइजीरिया तथा बोत्‍सवाना के साथ विपणन समझौता किया है।
कारगर परियोजनाएं   शहरी क्षेत्रों में स्‍वच्‍छ बुनियादी ढांचा उपलब्‍ध कराने के लिए ई-टॉइलट अब एक टिकाऊ परियोजना के रूप में उभर रही है। केरल सरकार के विभिन्‍न विभाग शहरी क्षेत्रों में स्‍वच्‍छ परियोजनाओं पर आधारित टिकाऊ प्रौद्योगिकी उपलब्‍ध कराने के लिए बड़े स्‍तर पर परियोजनाओं को कार्यान्वित कर रहे हैं।


·               केरल सरकार का महिला विकास निगम 200 से अधिक ई-टॉइलट लगा रहा है, जिन्‍हें महिलाओं के लिए शी-टॉइलट का नाम दिया गया है।
·               सार्वजनिक निर्माण विभाग केरल के राजमार्गों पर अनेक स्‍थानों पर ईव-ओन-ई-टॉइलट लगा रहा है।
·               केरल के पर्यटन विभाग की अपने महत्‍वपूर्ण पर्यटक स्‍थलों पर ई-टाइलटों का जाल बिछाने की योजना है। ऐरम कंपनी केरल में तीस से अधिक स्‍थानों पर पर्यटकों के लिए सुविधा केन्‍द्र भी बना रहा है।
·               केरल का पतनमथिट्टा जिला भारत में ई-टॉइलट बुनियादी ढांचे से जुड़ा हुआ पहला जिला है। जहां टॉइलटों के स्‍थान और उनके कार्य की स्थिति वैब आ‍धारित मानचित्र पर देखी जा सकती है। यह उस पर्यटक के लिए अधिक उपयोगी है, जो अपने परिवार के साथ यात्रा करता है। जुड़े हुए ई-टॉइलटों के बारे में जानकारी जीपीआरएस पर उपलब्‍ध है और उनका पता लगाने के लिए मोबाइल अथवा इन्‍टरनेट पर जानकारी प्राप्‍त की जा सकती है। ई-टॉइलट यह जानकारी दे सकते हैं कि वे महिलाओं के लिए हैं अथवा पुरूषों के लिए और इन सुविधाओं के स्‍थान और दूरी के बारे में भी जानकारी उपलब्‍ध की जा सकती है।
   
    इस कंपनी को हाल ही में बिल एंड मेलिंदा गेट्स फाउन्‍डेशन से चार लाख 50 हजार डॉलर से अधिक राशि के का अनुदान प्राप्‍त हुआ है, जिसके अधीन वह शहरी ग़रीबों की अधिक पहुंच में सुलभ शौचालय बनाने के लिए पर्यावरण हितैषी और स्‍वच्‍छ ई-टॉइलट लगाएगी। भारत सरकार के वैज्ञानिक और औद्योगिक विभाग के टैक्‍नोप्रीनियोर प्रोत्‍साहन कार्यक्रम के अधीन प्रोटोटाइप ई-टॉइलट का विकास किया गया। इसका विकास केरल सरकार की सहायता से तिरुअनन्‍तपुरम स्थि‍त टैक्‍नोपार्क कंपनी ने किया था। इस कंपनी को प्रोटोटाइप विकास के लिए भारत सरकार से सहायता अनुदान मिला और काम चलाऊ मॉडल तैयार करने के बाद यह प्रौद्योगिकी ऐरम सांइटिफिक सॉलूशन्‍स को इस प्रौद्योगिकी के व्यावसायीककरण के लिए हस्‍तांतरित कर दी गई है।                                         
(पीआईबी फीचर्स)   19-दिसंबर-2012 15:43 IST


*उपनिदेशक, पीआईबी, तिरुअनन्‍तपुरम

मीणा/शुक्‍ला/क्‍वात्रा/गीता/शौकत--298
पूरी सूची-19.12.2012

Thursday, November 22, 2012

खत्‍म होते कश्‍मीरी रेशम उद्योग का पुनर्रूद्धार

विशेष लेख                                                                                                  *एम एल धर
                                                                                                        Courtesy Photo
    रेशम जम्‍मू कश्‍मीर का संजो कर रखे गए धरोहरों में से एक रहा है। घाटी में रेशम उत्‍पादन का वर्णन राजतंरगिनी सहित प्राचीन संस्‍कृत ग्रंथों में मिलता है। वस्‍त्रों की रानी माने जाने वाले कश्‍मीरी रेशम को उपभोक्‍ता इसकी चमक, शुद्धता और महीन गुणों के कारण हमेशा चाहते रहे हैं।

     मध्‍यकालीन युग में कश्‍मीर में रेशम के उत्‍पादन को सुल्‍तान जैनुल आबिदीन जिन्‍हें बादशाह के नाम से भी जाना जाता है। उन्‍होंने इस पर विशेष ध्‍यान दिया तथा नई उन्‍नत तकनीक का इस्‍तेमाल कर इस उद्योग को काफी फलते फूलते बनाने में मदद की। हालांकि परवान चढ़ते इस उद्योग को कश्‍मीर में अफगान शासन काल में बहुत क्षति पहुंची लेकिन 19वीं सदी में डोगरा शासनकाल में इस पर फिर से ध्‍यान दिया गया और रेशम का उत्‍पादन कश्‍मीर की अर्थव्‍यवस्‍था में महत्‍वपूर्ण बन गया। 20वीं सदी के पहले मध्‍य काल में कश्‍मीर का रेशम व्‍यापार अपने श्रेष्‍ठ रेशमी सूत की वजह से न केवल पूरे ब्रिटिश साम्राज्‍य में निर्यात किया जाता था बल्कि समूचे यूरोप में इसकी मांग थी।

     रेशम का उत्‍पादन एक श्रम आधारित कुटीर उद्योग है जिसमें कृषि और उद्योग दोनों ही शामिल हैं। यह एक मात्र नकदी फसल है जो 30 दिन के अंदर ही फायदा पहुंचा देता है। रेशम उत्‍पादन से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि कश्‍मीरी रेशम के कीड़े की नस्‍ल स्‍थानीय रूप से देशज है और यह दुनिया में सर्वोत्‍तम गुणवत्‍ता वाला कृमिकोष उत्‍पन्‍न करता है।

     दो दशक से अधिक समय तक राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य आधार रहा रेशम का पोषण आज दुर्भाग्‍य से बदतर हालत में है। उपलब्‍ध आंकड़ों के मुताबिक कश्‍मीर में कृमिकोष का उत्‍पादन 90 के दशक के अंत में गिरकर 60 हजार किलोग्राम रह गया जबकि 80 के दशक में यह 15 लाख किलोग्राम से अधिक पर पहुंच गया था।

     कश्‍मीर में रेशम उद्योग के खराब होते हालात के कई कारण हैं। आमतौर पर माना जाता है कि इस उद्योग के एकाधिपत्‍य को समाप्‍त करने तथा कश्‍मीरी सूत कातने वालों का रेशम उत्‍पादन विभाग से अलग किए जाने से स्‍थानीय तौर पर कृमिकोष के इस्‍तेमाल में कमी आई। बाहरी व्‍यापारियों ने कृमिकोष की कीमतों में बढ़ोत्‍तरी न होने का फायदा उठाया। इन व्‍यापारियों ने कृमिकोष उत्‍पन्‍न करने वाले को अच्‍छे दामों पर अपने उत्‍पाद उन्‍हें बेचने के लिए बहला लिया, जिससे कश्‍मीर के कताई करने वालों के लिए बहुत कम कच्‍चा माल रह गया। सूत्रों ने बताया कृमिकोष के प्रति किलोग्राम की कीमत लगभग दो दशक में नहीं बढ़ाई गयी। उच्‍च गुणवत्‍ता वाले एक किलोग्राम कृमिकोष को किसानों से वर्ष 2009 तक केवल 180 रुपये में खरीदा जाता था। अभी उसकी कीमत 210 रुपये प्रति किलोग्राम है। यह इतना कम है जिससे इस क्षेत्र में उत्‍पादक आकर्षित नहीं हो सकते। वहीं खुले बाजार में इसकी कीमत 600 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाती है।

     कश्‍मीर के कताई करने वाले कारखाने इटली की चर्खियों से 1897 से ही सूत कातते रहे हैं, जिसे बाद में 1963 में जम्‍मू कश्‍मीर उद्योग लिमिटेड को हस्‍तांतरित कर दिया गया। इसकी स्‍थापन क्षमता 584 चर्खियों की थी, जिसमें 2000 से अधिक कामगार काम करते थे। उन दिनों कश्‍मीर में रेशम का व्‍यापार बहुत गतिशील था। लेकिन अब अफसोस है कि कताई के कारखाने के बुनाई वाले पहिए लगभग शांत पड़े हैं। कश्‍मीर की कताई के कारखानों का एकाधिकार समाप्‍त किए जाने से उसमें कच्‍चे माल का अकाल पड़ गया और इसका परिणाम यह हुआ कि इन कारखानों में सैकड़ों चर्खियों की जगह 2008-09 में यह केवल 31 पर सिमट कर रह गया। इसके बाद कच्‍चे रेशम का उत्‍पादन बहुत तेजी से घटता गया। यहां तक कि हाल के वर्षों में इसका उत्‍पादन बहुत उत्‍साहजनक नहीं है। 2004-05 में 8.2 मीट्रिक टन का उत्‍पादन हुआ जबकि 2007-08 में यह बढ़कर 21.2 मीट्रिक टन हुआ। लेकिन 2008-09 में फिर से यह गिरकर 17.1 मीट्रिक टन पर पहुंच गया। जम्‍मू कश्‍मीर एक मात्र राज्‍य है जो बिवोल्‍टाइन रेशम उत्‍पन्‍न करता है। लेकिन विडंबना यह है कि देशज रूप से उत्‍पन्‍न किए जाने वाला 30 प्रतिशत कृमिकोष का ही स्‍थानीय तौर पर रेशम के निर्माण में प्रयोग किया जाता है जबकि बाकी का कृमिकोष बाहरी व्‍यापारी ले जाते हैं। अधिकारियों का कहना है कि निजी रूप से इस काम में लगे लोग देशज तौर पर उत्‍पन्‍न 25 प्रतिशत कृमिकोष इस्‍तेमाल करते हैं जिसकी वजह से राज्‍य में रेशम उद्योग चल रहा है।

     इसके अलावा स्‍थानीय कालीन बुनने वाली इकाइयां भी देशज रेशम के स्‍थान पर कम गुणवत्‍ता के चीनी रेशम के सूत को प्राथमिकता देते हैं क्‍योंकि इसकी कीमत कम होती है इससे स्‍थानीय रेशम का उद्योग प्रभावित हुआ है।

     इसके अलावा शहतूत की पैदावार कम किए जाने से भी इसके उत्‍पादन पर फर्क पड़ा है। शहतूत के पत्‍तों पर ही रेशम के कीड़े पनपते हैं। शहतूत के रोपने का स्‍थान सिमट कर केवल 963 एकड रह गया है। इन्‍हीं सब वजहों और कृमिकोष की कम बाजार मूल्‍य की वजह से किसान इस क्षेत्र से विमुख हो गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कृमिकोष उत्‍पन्‍न करने वालों की संख्‍या जहां 1947 में 60 हजार थी वहीं यह 2011 में ढाई हजार रह गयी।

     इसके बावजूद कृषि और रेशम उत्‍पादन मंत्री श्री गुलाम हसन मीर का कहना है कि अभी सब कुछ खत्‍म नहीं हुआ है। उन्‍हें आशा है कि कश्‍मीर के रेशम उद्योग की चमक फिर से फैलेगी। वे पिछले कुछ वर्षों में अच्‍छे सूचकों की वजह से आशान्वित हैं। उनका कहना है कि कश्‍मीर में 2008-09 में 738 मीट्रिक टन कृमिकोष का उत्‍पादन हुआ। 2009-10 में यह बढ़कर 810 मीट्रिक टन पर पहुंचा जबकि पिछले वित्‍तीय वर्ष में यह 970 मीट्रिक टन की ऊंचाई पर पहुंच गया है, जिसकी कीमत 11 करोड़ रुपये है।

     रेशम उत्‍पादन मंत्री श्री मीर का मानना है कि इस क्षेत्र में रोजगार सृजन की बड़ी संभावना है और इसीलिए सरकार ने इस क्षेत्र के पुनर्रूद्धार के कई उपाय किए हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर शहतूत के पेड़ लगाए जाने को बढ़ावा देना शामिल है। इस सिलसिले में सरकार ने शहतूत के पेड़ों को लगाने के लिए बेरोजगार युवकों सहित विभिन्‍न समूहों को खाली पड़ी जमीन आवंटित करने की अनूठी योजना शुरू की है। रेशम उत्‍पादन विभाग ने इस योजना को तंगमर्ग जाने वाले 24 किलोमीटर के मार्ग पर आरंभ कर दिया है। यह रास्‍ता गुलमर्ग के पर्यटन केन्‍द्र का आधार शिविर है। यह विभाग किसानों को शहतूत के बीज और पौधे भी निशुल्‍क वितरित कर रहा है तथा उन्‍हें हर पौधे पर सात रुपये की सहायता भी दे रहा है। रेशम उत्‍पादन मंत्री ने यह भी कहा कि कृमिकोष उत्‍पादन का ढांचा विकसित करने के काम से जुड़े हर परिवार को 50 हजार रुपये की वित्‍तीय मदद भी दी जा रही है तथा इसके साथ ही उन्‍हें बीमा के तहत भी लाया जा रहा है। किसानों को इसे सुखाने की नवीनतम तकनीकी सहायता दी जा रही है, जिससे कि वे उत्‍पाद की गुणवत्‍ता बरकरार रख सकें। रेशम उत्‍पादन विभाग के अपर निदेशक डॉ. मलिक फारूक ने एक स्‍थानीय समाचार पत्र को बताया कि रेशम उद्योग को पुनर्जीवित करने की कई रणनीतियां बनाई गयी हैं। जबकि रेशम उत्‍पादन मंत्री ने कहा कि कृमिकोष का उत्‍पादन और उसकी कीमत में इस साल हुई बढ़ोत्‍तरी एक स्‍वस्‍थ प्रवृ‍त्ति प्रदर्शित करता है। उम्‍मीद है कि अपने पुराना वैभव को फिर से बहाल करते हुए राज्‍य में रेशम उद्योग उत्‍कर्ष पर पहुंचेगा। (PIB) 20-नवंबर-2012 19:47 IST
*लेखक एक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं।

वि. कासोटिया/अजीत/दयाशंकर- 287

Friday, October 5, 2012

जम्‍मू क्षेत्र के स्‍कूली बच्‍चों ने की गृह मंत्री से मुलाकात

40 स्‍कूली बच्‍चों ने की केंद्रीय गृ‍ह मंत्री श्री शिंदे से मुलाकात 
केंद्रीय गृ‍ह मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे स्कूली बच्चों के साथ (छाया:पीआईबी)
जम्‍मू क्षेत्र के दूर-दराज और दूरस्‍थ इलाकों के 40 स्‍कूली बच्‍चों (20 लडकियों और 20 लड़कों) के एक समूह ने केंद्रीय गृ‍ह मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे से आज मुलाकात की। 10-16 साल की आयु वर्ग के यह विद्यार्थी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा आयोजित भारत दर्शन यात्रा पर हैं। इस कार्यक्रम के अतंर्गत विद्यार्थियों को अहमदाबाद, भुज, बंगलौर, मैसूर, आगरा और दिल्‍ली ले जाया गया। बच्‍चों ने इन शहरों के ऐतिहासिक और सांस्‍कृतिक स्‍थानों को भी देखा। 

बीएसएफ के विशेष महानिदेशक श्री अरविंद रंजन ने गृह मंत्री को इन बच्‍चों से मिलवाया तथा यह भी बताया कि सभी बच्‍चे जम्‍मू के दूर दराज इलाकों से हैं। उन्‍होंने कहा कि इस यात्रा से बच्‍चों को अपने देश के बारे में जानकारी बढ़ाने में मदद मिलेगी। बच्‍चों ने भी विभिन्‍न ऐतिहासिक जगहों की यात्रा के अपने अनुभव को बांटा तथा इस तरह का टूर आयोजित करने के लिए बीएसएफ और भारत सरकार को धन्‍यवाद दिया। 

अपने एक नागरिक कार्यक्रम के तहत बीएसएफ जम्‍मू और कश्‍मीर के दूर दराज और सीमा क्षेत्रों के गरीब परिवारों के बच्‍चों के लिए भारत दर्शन यात्रा आयोजित करता है। बीएसएफ द्वारा प्रायोजित 35 भारत दर्शन यात्रा में अब तक जम्‍मू और कश्‍मीर के 1134 बच्‍चों ने भाग लिया है। 

गृह मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे ने बच्‍चों को आशीर्वाद दिया और अपने विचार उनके साथ बांटें। उन्‍होंने बच्‍चों को भारत की विविध संस्‍कृति की खूबसूरती को बांटने तथा देश को एकीकृत तरीके से हर दिन मज़बूत बनाने में मदद करने का सुझाव दिया। (PIB) 
04-अक्टूबर-2012 19:36 IST

मीणा/प्रियंका -4787

Thursday, October 4, 2012

महात्‍मा गांधी की जम्‍मू-कश्‍मीर की ऐतिहासिक यात्रा

   विशेष लेख:संस्‍कृति                                                                       - ओ. पी. शर्मा *  सत्‍य, अहिंसा और नैतिक मू‍ल्‍यों के प्रतिमान महात्‍मा गांधी ने अगस्‍त, 1947 के पहले सप्‍ताह के दौरान सामरिक दृष्टि से संवेदनशील जम्‍मू-कश्‍मीर की चार दिन की ऐतिहासिक यात्रा की, जो बहुत महत्‍वपूर्ण रही । यह कश्‍मीर की उनके जीवन की पहली और थोड़े समय की यात्रा थी, जिसने स्‍वतंत्रता प्राप्ति से कुछ दिन पूर्व की घटनाओं को कुछ निर्णायक मोड़ दिये। उनकी इस यात्रा ने स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद यहां के लोगों का विश्‍वास और धैर्य बनाए रखने में भी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्‍ट्रपिता हमेशा लोगों की भावनाओं को समझने की कोशिश करते थे और अहिंसा तथा सत्‍य के उनके सिद्धांतों और लक्ष्‍य की प्राप्ति के प्रति उनकी ईमानदारी का जिस प्रकार देश के अन्‍य भागों में असर पड़ा, उसी तरह उन्‍होंने जम्‍मू-कश्‍मीर के लोगों का भी दिल जीत लिया था।

  महात्‍मा गांधी की 1 से 4 अगस्‍त, 1947 की यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब देश एक कठिन समय से गुजर रहा था। जम्‍मू-कश्‍मीर तथा देश के लिए यह यात्रा ऐतिहासिक सिद्ध हुई। 1947 में भी इस यात्रा को बहुत महत्‍वपूर्ण माना गया, लेकिन आज भी जम्‍मू-कश्‍मीर के लोगों के लिए इस यात्रा की बहुत संगतता है। गांधी जी का शांति और सौहार्द का संदेश हमेशा समय की कसौटी पर खरा उतरा है और आज के समय के लिए  भी यह बहुत संगत है।

ऐतिहासिक यात्रा भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के नेताओं - गांधी जी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, मौलाना आजाद, सरदार पटेल और अन्‍य नेताओं से जम्‍मू-कश्‍मीर में आंदोलन के दौरान लोगों को प्रेरणा और एक नई विचारधारा मिली, की वे राजशाही के स्‍थान पर उत्‍तरदायी और लोकतांत्रिक शासन के बारे में सोचने लगे। कश्‍मीर में संघर्ष का नेतृत्‍व शेख मोहम्‍मद अब्‍दुल्‍ला ने किया, जो शांतिपूर्ण तरीकों के उच्‍च सिद्धांतों और हर कीमत पर हिन्‍दु - मुस्लिम एकता के पैरोकार थे । महात्‍मा गांधी की यात्रा के समय शेख अब्‍दुल्‍ला को जेल में डाल दिया गया था।   गांधी जी एक अगस्‍त, 1947 को जम्‍मू-कश्‍मीर की ग्रीष्‍मकालीन राजधानी श्रीनगर पहुंचे, जहां बेगम अकबर जहां ने उनका हार्दिक और शानदार स्‍वागत किया। वे वहां लोगों की वास्तविक समस्‍याओं को सुलझाने के लिए गए थे, जो अभी भी उन्‍हें परेशान कर रही थीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि गांधीवादी सिद्धांतों पर चलते हुए सभी मसलों का हल निकाला जा सकता है और स्‍थायी शांति, तरक्‍की और खुशहाली हासिल की जा सकती है। एक से चार अगस्‍त, 1947 की जम्‍मू-कश्‍मीर की महात्‍मा गांधी की चार दिन की यात्रा हमारे इतिहास का एक गौरवशाली अध्‍याय है।

  राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी पिछले 65 वर्षों से भारत के लोगों के बीच नहीं हैं, लेकिन उनके आदर्श अभी भी न केवल देश के लिए, बल्कि समूचे विश्‍व के लिए प्रकाश स्तम्भ की तरह है।  

  महात्‍मा गांधी की जयंती पर हमें नैतिक मूल्‍यों के उच्‍च आदर्शों और सिद्धांतों के प्रति अपने आप को फिर से समर्पित करना चाहिए, ताकि हम जम्‍मू-कश्‍मीर सहित देश को सामाजिक - आर्थिक न्‍याय पर आधारित एक सुदृढ़ धर्मनिरपेक्ष राष्‍ट्र बना सकें। (PIB)

(पत्र सूचना कार्यालय का विशेष लेख) 03-अक्टूबर-2012 14:25 IST
*लेखक एक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं नोट : इस लेख में लेखक द्वारा व्‍यक्‍त किये गए विचार उनके अपने हैं और आवश्‍यक नहीं कि वे पत्र सूचना कार्यालय के विचारों से मेल खाएं।

मीणा/राजगोपाल/शौकत-255

Friday, September 28, 2012

उद्देश्‍य: एक लाख युवकों को प्रशिक्षण और रोजगार

हिमायत के अंतर्गत रोजगार के लिए जम्‍मू कश्‍मीर के युवक प्रगति पर
केन्‍द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और जम्‍मू कश्‍मीर सरकार ने जम्‍मू कश्‍मीर में 2011 में संयुक्‍त रूप से हिमायत परियोजना शुरू की थी जिसका उद्देश्‍य अगले पांच वर्ष में राज्‍य के एक लाख युवकों को प्रशिक्षण और रोजगार देने के लिए रोजगार संबंधी कौशल विकास प्रदान करना है। अब तक 2431 युवकों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है और इस समय 2800 प्रशिक्षु जम्‍मू कश्‍मीर के 19 जिलों में फैले 42 केन्‍द्रों में प्रशिक्षण ले रहे हैं। हिमायत के अंतर्गत राज्‍य के बाहर प्रशिक्षित और रोजगार प्राप्‍त युवकों से संवाद करने और उन्‍हें प्रोत्‍साहित करने के लिए चंडीगढ़ में मोहाली के एमबीए कान्‍फ्रेंस हॉल एनआईपीईआर में 30 सितम्‍बर 2012 को एक संवाद सत्र आयोजित किया गया है। ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश ने प्रशिक्षित युवकों के साथ संवाद करने के लिए जम्‍मू कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री फारूख अब्‍दुल्‍ला को आमंत्रित किया है। 

केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल कार्यक्रम के लिए पहले ही 235 करोड़ रूपये मंजूर कर चुका है। उन युवकों को इसमें प्राथमिकता दी जाती है जिन्‍होंने स्‍कूल और कॉलेज में बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी है। प्रत्‍येक ब्‍लॉक मुख्‍यालय में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। निजी क्षेत्र के संस्‍थानों जैसे आईएलऔरएफएस और डॉन बोस्‍को तकनीकी संस्‍थान को युवकों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए चुना गया है। एक बार जब प्रशिक्षित युवक अपना पाठ्यक्रम पूरा कर लेते हैं और उन्‍हें रोजगार मिल जाता है, मंत्रालय अगले तीन वर्ष तक उनकी प्रगति पर नजर रखता है और जरूरत पड़ने पर उन्‍हें और प्रशिक्षण प्रदान करता है। यह कार्यक्रम जम्‍मू कश्‍मीर के युवकों के लिए रोजगार सृजित करने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दूरदर्शिता का हिस्‍सा है। युवकों को देशभर में, जम्‍मू कश्‍मीर और बाहर रोजगार दिया जाता है। हांलाकि लड़कियां राज्‍य में ही काम करना चाहती हैं लेकिन अनेक पुरूष राज्‍य के बाहर भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं। शिमला, जयपुर और चंडीगढ़ जैसे शहरों में नौकरियों के ऑफर मिलते हैं।(PIB) 27-सितम्बर-2012 14:23 IST

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Thursday, September 27, 2012

कश्‍मीर विश्‍वविद्यालय का 18वां दीक्षांत समारोह

समारोह में राष्‍ट्रपति ने दिया मूल्‍यों और चरित्र निर्माण पर 
राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि मूल्‍यों और चरित्र निर्माण पर जोर देने वाले उच्‍च शिक्षण संस्‍थान छात्रों में जिम्‍मेदारी की और अधिक भावना पैदा करने तथा सभी मुद्दों पर तर्कसंगत रवैया विकसित करने में प्रभावकारी भूमिका निभा सकते हैं। इस संदर्भ में शिक्षकों का कर्तव्‍य है कि वे अपने छात्रों को नैतिक और सौंदर्यपरक मूल्‍यों के साथ ज्ञान दें। 

राष्‍ट्रपति कश्‍मीर विश्‍वविद्यालय के 18वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्‍होंने कहा कि इस विश्‍वविद्यालय की बौद्धिक और साहित्यिक गतिविधि की गौरवशाली परम्‍परा रही है और इसने अपनी शुरूआत के बाद लंबा सफर तय किया है। राष्‍ट्रपति ने कहा कि भारत और दुनियाभर में पढ़ाई का माहौल पहले की तुलना में आज कहीं ज्‍यादा रोमांचक है। सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति ने असीमित अवसर प्रदान किये हैं। इसने हमारे छात्रों को अधिक आधुनिक, प्रगतिशील और प्रासंगिक शिक्षा प्रदान की है। 

सरकार ने अपनी 12वीं पंचवर्षीय योजना में इसे पूरा करने के लिए सुपरिभाषित रणनीति तैयार की है। इसमें क्षेत्रीय समानता के साथ बुनियादी सुविधाओं का विस्‍तार, कार्य निष्‍पादन पर विशेष ध्‍यान, बेहतर मानव संसाधन प्रबंध, पाठ्यक्रम में सुधार, गुणवत्‍ता अनुसंधान को बढ़ावा देना शामिल है। इसके साथ ही ऐसा माहौल तैयार करना है जिसमें प्रतिभाएं आकर्षित हों। सरकार ने हाल ही में दो केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों की स्‍थापना की है। 

राष्‍ट्रपति श्री मुखर्जी ने कहा कि नई प्रौद्योगिकी को अपनाने की जरूरत है जिसकी अध्‍यापन, अध्‍ययन और पेशेवर विकास में उपयोगिता हो। इससे हमारे अध्‍यापन और अनुसंधान की गुणवत्‍ता में सुधार होगा। विश्‍वविद्यालयों को सृजनात्‍मकता और नये परिवर्तनों को बढ़ावा देना चाहिए। यह भी आवश्‍यक है कि भारत और विदेश में उच्‍च शिक्षा के प्रमुख संस्‍थानों के बीच सहयोग और संपर्क कायम हो ताकि विचारों और जानकारी का आदान-प्रदान किया जा सके। 

उन्‍होंने छात्रों और अनुसंधानकर्ताओं का आहवान किया कि वे कश्‍मीर की खूबसूरती को ध्‍यान में रखते हुए पारिस्थितिकी और पर्यावरण के संरक्षण को ध्‍यान में रखें। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें कश्‍मीर विश्‍वविद्यालय जैसे संस्‍थान अपने और भावी पीढि़यों के फायदे के लिए महत्‍वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। छात्रों को जलवायु परिवर्तन और जमीन, ताजा पानी और समुद्री संसाधनों की कमी के प्रभावों की जानकारी होनी चाहिए। 

राष्‍ट्रपति श्री मुखर्जी ने विश्‍वास व्‍यक्‍त किया कि भारत के युवा एक ऐसे मजबूत और शक्तिशाली राष्‍ट्र का निर्माण करेंगे जो राजनैतिक दृष्टि से परिपक्‍व और आर्थिक दृष्टि से मजबूत होगा, जहां जनता न्‍याय, मौलिक अधिकारों और समानता के साथ गुणवत्‍तापूर्ण जीवन व्‍यतीत कर सकेगी।

उन्‍होंने कहा कि अनेक महत्‍वपूर्ण मुद्दों का दक्षता से और तेजी से समाधान करने की जरूरत है। केन्‍द्र सरकार और जम्‍मू कश्‍मीर सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि प्रत्‍येक कश्‍मीरी समान अधिकारों और समान अवसरों के साथ सम्‍मानपूर्ण जीवन बिताए। जम्‍मू कश्‍मीर भारत के नये भविष्‍य के निर्माण में अग्रणी हो सकता है और शांति, स्थिरता और समृद्धि क्षेत्र में बदलकर शेष भारत और दुनिया के सामने उदाहरण प्रस्‍तुत कर सकता है। 

राष्‍ट्रपति ने इस अवसर पर कश्‍मीर विश्‍वविद्यालय के विद्वानों और छात्रों को बधाई दी और कामना की कि वे कामयाबी की नई ऊंचाइयों को छुएं। (PIB) 
27-सितम्बर-2012 15:43 IST

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